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शरद पूर्णिमा की कथा: आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं. इस दिन व्रत की बहुत महत्ता बताई गई है. साथ ही इस दिन व्रत को तभी पूर्ण माना जाता है जब इसकी कथा पढ़ी जाती है.

शरद पूर्णिमा को हिंदू धर्म की सबसे शुभ तिथि के तौर पर जाना जाता है. इस दिन का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. कहा जाता है कि इस दिन चांद अपनी पूरी 16 कलाओं में विद्दमान होता है और इसकी किरणों से अमृत रस की बर्षा होती है. इस लिहाज से इस दिन को बेहद खास माना जाता है. लोग व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु-मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं. बता रहे हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन आपको क्या करना चाहिए और इस दिन व्रत रहने के साथ ही कथा का क्या महत्व है.
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा को इंसान की उम्र और सेहत के हिसाब से बहुत लाभकारी माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन अगर रात के वक्त चंद्रमा के नीचे खड़े होकर खीर का सेवन किया जाए तो इससे इंसान को लंबी उम्र और अच्छी सेहत मिलती है. इसके कई सारे फायदे हैं. मान्यता ये है कि शरद पूर्णिमा के दिन चांद 16 कलाओं में विद्दमान होता है. और इसका सकारात्मक प्रभाव इंसान पर पड़ता है. इसलिए इस दिन की विशेष महत्ता है.
शरद पूर्णिमा की तिथि
शरद पूर्णिमा की तिथि की बात करें तो हिंदू पंचाग के अनुसार आश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर की रात को 08 बजकर 40 मिनट पर शुरू होगी जो अगले दिन यानी 17 नवंबर 2024 की शाम को 04 बजकर 55 मिनट पर खत्म होगी. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इसके अलावा इस दिन मां लक्ष्मी की भी आराधना का विशेष फल भक्तों को मिलता है. इस दिन व्रत रखने के साथ ही कथा पाठ भी किया जाता है. बता रहे हैं कि वो कौन सी कथा है जिसका पाठ करना शरद पूर्णिमा के दिन लाभकारी माना जाता है.
शरद पूर्णिमा की कथा
कथा के अनुसार बहुत समय पहले एक नगर में एक साहुकार रहा करता था. उसकी दो पुत्रियां थीं. दोनों ही पुत्री विधिपूर्वक पूर्णिमा का उपवास रखती थीं. लेकिन साहुकार की छोटी बेटी उपवास को अधूरा छोड़ देती थी. जबकी बड़ी बेटी की बात करें तो वो हमेशा पूरी लगन और श्रद्धा से इस व्रत का पालन करती थी. जब दोनों बड़ी हो गईं तो उनके पिता ने दोनों का विवाह कर दिया. शादी के बाद भी बड़ी वाली बेटी पूरी आस्था से उपवास रखती थी. इस व्रत का प्रभाव ऐसा था कि इसका उसे लाभ भी मिला. उसे बहुत ही सुंदर और स्वस्थ संतान मिली. वहीं छोटी बेटी को संतान प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ा. वो तो काफी परेशान हुई साहूकार भी इस बात से चिंतित रहने लगा. इसके बाद साहूकार ने ब्राह्मणों को बुलाकर बिटिया की समस्या बताई.
आखिर कहां हो रही थी दिक्कत
पंडितों ने मामले की गंभीरता का पता लगाया और साहूकार से कहा कि आपकी छोटी बेटी ने पूर्णिमा के व्रत का नियम पालन सच्चे मन से नहीं किया इसलिए इसके साथ ऐसा हो रहा है. ब्राह्मणों ने उसे इस व्रत की विधि बताई जिसके बाद उसने पूरे विधि-विधान से फिर से व्रत रखा. इस बार छोटी बेटी की आस्था रंग लाई और उसे संतान हुई. लेकिन संतान जन्म के कुछ दिनों तक ही जीवित रह सकी और उसका निधन हो गया. ये देख छोटी बेटी और भी विचलित और मायूस हो गई.
तब उसने अपनी मृत संतान को पीढ़े पर लेटाया और उसे कपड़े से ढंक दिया. उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसने अपनी बड़ी बहन को बैठने के लिये वही पीढ़ा दिया जिसपर उसकी मृत संतान थी. बड़ी बहन जैसे ही पीढ़े पर बैठने लगी तो रहस्यमयी तरीके से कपड़े के छूते ही बच्चे के रोने की आवाज आई. बड़ी बहन आश्चर्य में पड़ी कि तू अपनी ही संतान को मारने का दोष मुझ पर लगाना चाह रही थी. तब छोटी बहन ने कहा कि यह तो पहले से मरा हुआ था लेकिन आपके प्रताप और स्पर्श से इसके प्राण वापस आ गए. इसी दिन के बाद से शरद पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व हर तरफ फैल गया.