Opinion
महाराष्ट्र और झारखण्ड में विधानसभा चुनाव संपन्न हो गए। परम्परा के अनुसार एग्जिट पोल भी आ गए। इनकी पोल 23 नवम्बर को खुलेगी।

महाराष्ट्र के एग्जिट पोल में महायुति की सरकार की संभावना बताई गई है। झारखंड में भी भाजपा की जीत बताई जा रही है। हो सकता है एग्जिट पोल ही सही निकलें लेकिन पिछले दो चुनावों के एग्जिट पोल देखने के बाद इन पर भरोसा नहीं होता।
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दरअसल, ये जिस तरह सर्वे करते हैं, उस तरीक़े से सही अंदाज़ा लगाना बड़ा मुश्किल काम है। कोई भी व्यक्ति जब पोलिंग बूथ से वोट देकर निकलता है तो वह किसी को भी यह नहीं बताता कि उसने किसे वोट दिया। फिर इन एग्जिट पोल वाले सर्वेयर कहां से और किस तरह सत्य की खोज कर लेते हैं, समझ में नहीं आता।
खैर, वोटिंग परसेंटेज पर जाएँ तो झारखंड और महाराष्ट्र दोनों जगह इसमें बढ़ोतरी हुई है। वैसे वोट परसेंटेज बढ़ने का सीधा मतलब समझा जाता है कि इससे भाजपा या उसके गठबंधन को फ़ायदा होता है। फ़ायदा इसलिए कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों का जो परम्परागत वोटर है, वह तो हमेशा वोट करता ही है।

भाजपा का वोटर पूरा का पूरा घर से वोट देने नहीं निकलता। वो जब निकलता है तो वोट परसेंटेज बढ़ जाता है। वही वोट आख़िर निर्णायक भी साबित होता है। वोट परसेंटेज बढ़ाने का यह काम भाजपा के लिए RSS करता है। उसके वालंटियर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को घर से निकालकर वोट देने के लिए प्रेरित करते हैं। यही उनकी स्ट्रैटेजी रहती है। ये सारे वोट भाजपा के पक्ष में जाते हैं, ऐसा माना जाता है।
हालाँकि, महाराष्ट्र के बारे में यह गणित भी एकदम सही बैठने वाला नहीं है। यहाँ छह बड़ी पार्टियाँ मैदान में हैं। जिन तीन-तीन के समूह में ये बंटी हुई हैं, उनमें आपस में भी विचारों का मिलना टेढ़ी खीर है।
महायुति में देखा जाए तो अजित दादा की पार्टी के विचार भाजपा और शिंदे सेना से नहीं मिलते। महाअघाडी में देखें तो कांग्रेस और पवार से उद्धव सेना के विचार नहीं मिलते। कुल मिलाकर ये मजबूरी के साथी बने हुए हैं।
चुनाव संपन्न होने के बाद चुनाव परिणाम और उसके बाद सरकार का गठन महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र में बहुमत जिसे भी मिले, मुख्यमंत्री चुनना बहुत पेचीदा मामला रहेगा।
महायुति में हालाँकि फ़ैसला ऊपर से ही होना है, लेकिन एक बार मुख्यमंत्री रह चुके एकनाथ शिंदे क्या भाजपा का मुख्यमंत्री बर्दाश्त कर पाएँगे, यह सबसे बड़ा सवाल है।

महा अघाडी में और भी ज़्यादा पेंच है। जिस मुख्यमंत्री पद के लिए उद्धव ने भाजपा का वर्षों पुराना साथ छोड़ दिया, वे क्या कम सीटें आने पर भी इस पद के बिना रह पाएंगे, यह पेचीदा सवाल है। हालाँकि, 23 नवंबर को पता चलेगा कि कौन, किधर जाएगा और कौन किसकी सरकार बनवाएगा!