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सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति के अधिग्रहण पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। न्यायालय ने कहा कि सरकार सभी निजी संपत्तियों को नहीं ले सकती। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 9 जजों की पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ ने 8-1 के बहुमत से यह निर्णय लिया है…

 निजी संपत्ति का सरकार सार्वजनिक हितों के लिए अधिग्रहण कर सकती है या नहीं, इस मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने बहुमत से अपने फैसले में कहा है कि सभी निजी संपत्ति को सरकार नहीं ले सकती है। पीठ ने 8-1 के बहुमत से ये फैसला सुनाया है।

9 जजों की पीठ ने सुनाया फैसला

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली 9 जजों की संविधान पीठ ने 8-1 के बहुमत से फैसला सुनाया है। पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस राजेश बिंडल और जस्टिस ए जी मसीह शामिल हैं। सीजेआई ने 9 जजों की बेंच के मामले में बहुमत से फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के पिछले फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है।

जस्टिस अय्यर के विचार से सहमत नहीं सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था का मकसद विकासशील देश की चुनौतियों से निपटना है, ना कि किसी एक आर्थिक ढांचे में बंधे रहना। कोर्ट ने माना कि बीते 30 सालों में बदली हुई आर्थिक नीतियों के कारण भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना है। जस्टिस अय्यर के इस विचार से सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं है कि निजी संपत्ति को भी सामुदायिक संपत्ति माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि भारत की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य किसी खास आर्थिक मॉडल को फॉलो करना नहीं है। बल्कि, उसका उद्देश्य एक विकासशील देश होने के नाते आने वाली चुनौतियों का सामना करना है।

सीजेआई बोले- तीन जजमेंट हैं

सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति से जुड़ी 16 याचिकाओं पर फैसला सुनाया है। जिसमें मुंबई के प्रॉपर्टी मालिकों की याचिका भी शामिल है। मामला 1986 में महाराष्ट्र में हुए कानून संशोधन से जुड़ा है, जिसमे सरकार को प्राइवेट बिल्डिंग को मरम्मत और सुरक्षा के लिए अपने कब्जे में लेने का अधिकार मिला था। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह संशोधन भेदभावपूर्ण है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि इस मामले में तीन जजमेंट हैं – उनका और छह अन्य जजों का, जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला और जस्टिस धुलिया का असहमति वाला।

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